Natasha

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डार्क हॉर्स

शुक्ला जी गणित के पक्के थे, हिसाब-किताब के जानकार आदमी थे। किसी परिचित ने बताया कि मुखर्जी नगर जाकर एक बार भाग्य आजमाइए यहाँ अब बैंकिंग की तैयारी करने वालों की भी अच्छी-खासी आबादी रहने लगी थी। शुक्ला जी ने यहाँ एक मित्र की सहायता से बता सिनेमा के ठीक बगल में महाराष्ट्ररा बैंक के ऊपर आर्यभटट रिटर्न नाम से एक कमरे की कोचिंग खोल ली शून्य से दस तक विद्यार्थी जाते-जाते तीन महीने बीत गए थे जमा पूँजी खत्म होने लगी। तब जाकर उन्हें यहाँ के बाजार का गणित समझ में आया और कोचिंग बंद कर उन्होंने चाय की दुकान खोल ली। आज महीने में पंद्रह हजार तो कहीं नहीं जाते, आगे चाहे जो हो।

रोजाना की तरह शाम को शुक्ला जी की दुकान पर छात्रों की भीड़ लगी हुई थी।

पाँच-सात के समूह में अलग-अलग गोला बनाकर लोग ज्ञान का बारुद उड़ा रहे थे। रायसाहब भी संतोष को लिए वहाँ खड़े थे रायसाहब को देखते ही रुस्तम सिंह ने दोनों हाथ उठाए और जोर से बोला, "अरे किरपा बाबू आइए महराज कहाँ थे दो दिन गायब. एकदम महफिल सूना था यार!" “अरे उ लोअर मेंस का थोड़ा तैयारी में फँसे हुए हैं।" रायसाहब ने दो दिन की

अनुपस्थिति के प्रति खेद जताते हुए कहा।

"क्या किरपा बाबू आप जैसा विद्यार्थी लोवर फोवर के चक्कर में पड़ा है। अरे आप आईएएस पर फोकस होइए महराज !" रुस्तम ने रायसाहब में कृत्रिम हवा भरते हुए कहा। "हाँ क्या कीजियएगा, चाहते तो हम भी नहीं हैं पर घर-परिवार के दबाव में मामूली

परीक्षा भी देना पड़ता है। एक टीचर वाला भी फारम डाले हैं, देखिए कब होगा परीक्षा?"

रायसाहब ने कंधे उचकाते हुए कहा। "अरे दो कप हाफ चाय लाओ वे छोटू, ये आप ही के साथ है ना!" रुस्तम ने संतोष की तरफ देखते हुए कहा।

"हाँ, ये संतोष जी हैं। हमारे मित्र हमारे ही साथ है। " रायसाहब बोले।

"कहाँ, इलाहाबाद की धरती से है का?" रुस्तम ने तुरंत पूछा। "नहीं ये बिहार से हैं। भागलपुर से " रायसाहब ने बताया। तब तक बजरंग शुक्ला

के यहाँ काम करने वाला छोटू चाय लेकर आ गया था। "अबे ! जरा माचिस लेई आओ बेटा " रुस्तम ऊपर की जेब से सिगरेट निकालते हुए बोला। तब-तक रायसाहब ने पहली चुस्की लेते हुए कहा, "चाय एकदम पछोछर लग

रहा है। शुक्ला जी का भी क्वालिटी गिर रहा है अब इलाहाबाद वाला चाय यहाँ कहीं

नहीं मिला रुस्तम भाई।" "लीजिए, अरे इलाहाबाद वाला बात यहाँ कहाँ पाएँगे रायसाहब! अल्लापुर चौराहे पर लल्लन की दुकान पे पीजिए, मजा आ जाता है। अपना ही चला है।" रुस्तम ने धुआँ उड़ाते हुए कहा।

मुखर्जी नगर में एक इलाहाबाद हमेशा चलता-फिरता रहता था। हिंदी माध्यम से

तैयारी करने वालों में से सबसे ज्यादा सघन संख्या इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आए

छात्रों की ही है, ऐसा प्रतीत होता था यहाँ हर शाम जब भी ये छात्र चाय की दुकान

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